Thursday, August 10, 2017

उपहार

हम बहनों के लिए मेरे भैया
आता है एक दिन साल में
आज के दिन मैं जहाँ भी रहूँ
चले आना वहाँ हर हाल में
हम बहनों के लिए मेरे भैया
आता है एक दिन साल में

कितने दिन और कितनी रैनें
इस आँगन में रहना है मैंने
परदेसी होती हैं बहनें
बाबुल जाने भेज दे मेरी
डोली कब ससुराल में
चले आना वहाँ हर हाल में.........हर साल रक्षा बंधन के दिन रश्मि रमन को यह गाना जरूर सुनाती थी
रमन उसको छेड़ता था- हर साल गाना सुना देती है पर ससुराल नहीं जाती है.......ससुराल जाएगी तब तो आऊँगा
आखिरकार वह दिन भी आया जब रश्मि ससुराल चली गयी......उस साल रक्षा बंधन की प्रतीक्षा दोनों भाई-बहन बेसब्री से कर रहे थे
रमन राखी बंधवाने जाने लगा तब माँ ने एक साड़ी मिठाई का डिब्बा और 500 रुपए उसको दिए.…..रश्मि को देने के लिए
बहन से मिलने की खुशी और अपना वादा निभाने के उत्साह के साथ रश्मि के घर पहुँचा
बहन ने भी खुशी-खुशी राखी बाँधी मिठाई खिलाया और नेग लिया
सब बहुत खुश थे पर थोड़ी देर में ही रमन को माहौल कुछ बदला बदला से महसूस होने लगा......कारण कुछ समझ मे नहीं आया
थोड़ी देर बाद वो वापस अपने घर लौट गया
दिपावली पर जब रश्मि मायके आई तब उसने बातों ही बातों में बताया कि रक्षा बन्धन में उसकी जिठानी के भाई ने जिठानी को सोने की अँगूठी दी थी
इसलिए उसकी सास और ननदें उसको ताना दे रहीं थीं
रश्मि की जिठानी के भाई  का पेट्रोल पम्प था और पिता भी सरकारी नौकरी में थे
जबकि रश्मि के पिता किसान थे और रमन अभी पढ़ाई कर रहा था.....दोनों परिवारों में आर्थिक असमानता थी
न जाने क्यों समाज में व्यक्ति का सम्मान उसकी आर्थिक स्थिति से होता है.....व्यवहार और गुण धन-संपत्ति के सामने बौने साबित होते हैं ।
रश्मि के ससुराल वाले भी इसी मानसिकता के थे इसलिए जिठानी के मायके वालों से तुलना करके रश्मि के मायके वालों का मज़ाक उड़ाते रहते थे
मायका चाहे बुरा ही क्यों न ही पर उसकी शिकायत सुनना किसी भी औरत को सहन नहीं होता है......मुखर होती है तो बोल कर विरोध कर लेती है और अंतर्मुखी होती है तो अंदर ही अंदर घुट कर रह जाती है ।
रमन को रक्षा बंधन वाले दिन के बदले हुए माहौल का कारण अब समझ में आ गया था
रश्मि के संवेदनशील स्वभाव को भी वो जानता था इसलिए उसकी मनःस्थिति को समझ गया
अगले वर्ष रक्षा बंधन के दो दिन पहले ही रश्मि ने फोन करके रमन को आने से मना कर दिया.....बहाना बनाया कि वो लोग कहीं बाहर जाने वाले हैं
माँ-पिताजी ने इस बात को सहजता से लिया लेकिन रमन को विश्वास नहीं हुआ
रश्मि मन ही मन दुखी भी थी और प्रसन्न भी......भाई को राखी नहीं बांध पाने का दुख तो था
लेकिन उपहार का मज़ाक उड़ा कर मायके के बारे में भला-बुरा सुनने से मुक्ति मिलने से प्रसन्न भी थी
रमन ने दोस्तों के साथ घूमने जाने का घर में बहाना बनाया और बिना किसी को बताए रश्मि के घर चला गया
रमन को देख रश्मि की आँखे भर आईं क्योंकि आज खुद को भाई से दूर रख पाना उसके लिए भी मुश्किल हो रहा था
रमन ने माहौल को हल्का-फुल्का करते हुए रश्मि को कहा-अब राखी भी बाँधेगी या बस रोती ही रहेगी.......मुझे भूख भी लगी है जल्दी से राखी बांध और खाना खिला  नहीं तो उपहार भी नहीं दूँगा
होने वाले मान-अपमान को भूल कर रश्मि भी त्योहार की खुशी में खो गयी.....रमन को राखी बांधने की तैयारी करने लगी
राखी बंधवाने के बाद रमन ने रश्मि को जब नेग दिया तो उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा.....
महँगी साड़ी के साथ सोने के टॉप्स रमन के उसके हाथ में पकड़ा कर पैर छुए तो रश्मि भावातिरेक हो कर कुछ बोल ही नहीं पाई
उसकी मनोदशा को समझते हुए रमन ने धीरे से बोला - परेशान मत हो,मैंने अपनी पॉकिट मनी के पैसे बचाए और ट्यूशन करके पैसे इकठ्ठे किए थे
बीस साल तक जो वादा किया था उसको पूरा करने में उपहार को राह का रोड़ा कभी नहीं बनने दूँगा
और अपनी बहन को उसके ससुराल में कभी शर्मिंदा भी नहीं होने दूँगा
यह बोलता हुआ रमन अचानक से बहुत बड़ा लगने लगा रश्मि को
माता-पिता बच्चों को जितना नहीं समझते हैं उससे ज्यादा भाई-बहन एक दूसरे के मन के भाव को जानते समझते हैं
अनकही को जान कर बहन की खुशियों का ख्याल रखना भाई को खूब आता है
क्योंकि बहन की शादी के समय भाई को उसकी खुशियों की ही चिंता ज्यादा रहती है

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