Monday, July 9, 2018

गुरु पूर्णिमा

गुरु पूर्णिमा
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महर्षि कृष्ण द्वैपायन व्यास की जयंती को हम व्यास पूर्णिमा या गुरु पूर्णिमा के नाम से जानते हैं ।

व्यास पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा क्यों कहते हैं ?
महर्षि व्यास ने हिन्दू समाज के स्वध्याय के लिए सभी ग्रंथ सुलभ किए......वेद और पुराण का विश्लेषण कर उसके अलग-अलग विभाग को बाँटा
वेद का विश्लेषण कर उसको मंत्र,ब्राह्मण,आरण्यक और उपनिषदों के रूप में सबको पृथक किया
मंत्र भाग के भी चार भाग किए.....ऋग,यजु,साम और अथर्व
जिनको हम चार वेद कहते हैं,वास्तव में वो वेद के सिर्फ एक अंग हैं ।
पुराण को भी अठारह ग्रंथों के रूप में संकलित कर के साधारण लोगों को वेद तत्व समझाने का काम किया.......इसलिए उनको आदि गुरु मान कर उनकी जयंती पर उनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए गुरु पूर्णिमा मनाने की परंपरा शुरू हुई ।

चुकि गुरु पूर्ण होता है इसलिए पूर्णिमा की तिथि को ही गुरु के नाम किया गया
पहले के समय में गुरु पूर्णिमा की संध्या में वायु परीक्षण भी किया जाता था जिसके आधार पर भावि तेजी-मंदी आदि का निर्धारण होता था ।
अब तो कोई जानता भी नहीं है ।

समय के साथ समाज बदला तो गुरुकुल भी विद्यालय बने और अब स्कूल हो गए हैं
गुरु-शिष्य शिक्षक-छात्र से होते हुए टीचर-स्टूडेंट हो गए ।
भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान बहुत ऊँचा था......तभी तो कबीर दास ने कहा था....."गुरु गोविंद दोनों खड़े
                                    काके लागूं पांय ।
                                    बलिहारी गुरु आपने
                                    जिन गोविंद दियो बताय ।।"
आज गुरु-शिष्य परंपरा शिक्षा के क्षेत्र में तो समाप्त ही हो चुका है.....आध्यात्मिक गुरु-शिष्य परंपरा की लकीर अभी भी पिटी जा रही है ।

आज फी दे कर पढ़ने वाले स्टूडेंट्स की दृष्टि में टीचर्स वेतन पाने वाले उनके नौकर से ज्यादा सम्मानीय नहीं होते हैं ।
प्राचीन भारत में आज की तरह विद्या-विक्रय नहीं होता था इसलिए गुरुकुल में राजा-रंक का भेदभाव नहीं था
राजकुमार हों या निर्धन का पुत्र दोनों एक साथ एक ही वृक्ष के नीचे कुश के आसन पर बैठ कर गुरु से शिक्षा लेते थे
निर्धनता किसी की शिक्षा में बाधक नहीं था और किसी को शिक्षा के लिए आरक्षण की आवश्यकता भी नहीं थी

गुरुकुलों का मूल मंत्र " सादा जीवन उच्च विचार "........तप और त्याग उनका उद्देश्य था और लोकहित पर जीवन उत्सर्ग उनका आदर्श
आज स्कूलों में ही हाई-फाई लाइफ और दिखावा सिखाया जाता है......तप और त्याग की जगह सुविधाओं की भरमार और लोकहित की जगह स्वार्थ को आदर्श बताया जाता है
परिणामस्वरूप अब कपिल,कणाद पाणिनि जैसे विद्या के धनी शिष्य नहीं रूबी राय और गणेश कुमार जैसे टॉपर होते हैं

प्राचीन भारत में गुरु-वर्ग के प्रति जो दृढ़ और आपार श्रद्धा शिष्य के हृदय में होती थी उस पर गर्व करने का अवसर गुरु पूर्णिमा देता है
अपनी प्राचीन परंपरा को नमन करें.....गुरु का मज़ाक उड़ाने वाली शुभकामनाएँ न दें

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