Friday, December 26, 2014

भय और प्रेम

इस संसार में जितने भी जीव हैं सबको भय की अनुभूति होती है। बच्चा हो या वृद्ध ,मनुष्य हो या पशु सबको भय का अनुभव होता है।
  भय होने का कारण मन की कमजोरी,अज्ञानता,कायरता या लोकलाज को समझा जाता है परन्तु जब गहराई से इस पर विचार करेंगे तब पाएंगे कि भय का मूल कारण प्रेम का आभाव है।
वैसे तो एक कहावत प्रचलित है-"भय बिन प्रेम न होय"
पर वास्तविकता तो यही है की ऐसा प्रेम एक प्रकार की स्वार्थ की भावना है न की प्रेम ,भले ही वह स्वार्थ किसी भी प्रकार का हो,किसी भी कारन से हो।
स्वाभाविक प्रेम तो बिना शर्त होता है,कुछ पाने के लिए नहीं कुछ देने के लिए होता है। पाने के लिए किया गया प्रेम लोभ है,वासना है और व्यापार है।
वास्तविक प्रेम भयरहित होता है इसलिए जिससे प्रेम होता है उससे भय हो ही नहीं सकता है। भय के बल पर प्रेम प्राप्त नहीं किया जा सकता सिर्फ घृणा ही प्राप्त की जा सकती है।
जो जिससे भयभीत होता है वह उससे कभी प्रेम नहीं कर सकता और जिससे प्रेम करता है उससे कभी भयभीत नहीं हो सकता।
हम परमात्मा से प्रेम नहीं करते हैं इसलिए भयभीत रहते हैं। जो परमात्मा से प्रेम करता है वही अभय हो सकता है और उसे फिर कभी भी,कहीं भी तथा किसी भी स्थिति में भय नहीं लगता क्योंकि परमात्मा सर्वकालिक है सर्व व्यापक है यानि हर समय हर जगह मौजूद रहता है।

Wednesday, June 11, 2014

नीच व्यक्ति के लक्षण

नीच व्यक्ति का प्रमुख लक्षण यही है कि वह बिगाड़ना तो जानता है पर बनाना नहीं जानता जैसे वायु वृक्ष को उखाड़ कर पटक तो सकती है पर गिरे हुए वृक्ष को उठा कर जमा नहीं सकती ।
काम बिगाड़ना ही नीचता है और नीच व्यक्ति काम बिगाड़ तो सकता है पर काम बनाता नहीं है ।
चूहा अन्न की पिटारी गिरा तो सकता है पर उठा कर रख नहीं सकता है ।बिल्ली दूध पी नहीं पाती है तो लुढका ही देती है पर फैले हुए दूध को वापस बरतन में नहीं डाल सकती है ।
ऐसा ही स्वभाव दुष्ट व्यक्ति का होता है या कह लीजिये कि ऐसे स्वभाव वाला व्यक्ति नीच होता है।