Friday, September 6, 2013

आलस्य

जीवन  मे उत्साह्हीनता के कारन काम ना करने की प्रव्रुति को आलस्य कहा जाता है. जब हमारे सामने कोइ कारन या लक्ष्य ना हो तो मन मे कुछ करने का विचार नहि आता है ,निराशा शोक या उत्साह्हीनता वली मानसिक दशा मे भी कुछ करने की इछा नही होती है और हम निश्क्रिय जीवन जीने लगते है.....यह आलस्य है
बच्चे आलसी  नही होते है अगर वो बीमार ना हो तो ,बच्चे हि नही नन्हे शिशु भी उर्जा से भरपुर होते है ,उर्जा उन्हे कुछ ना कुछ करने के लिये उकसाती रहती है
,वो उधम करते है ,सामान इधर उधर करते है ,उन्हे खिलौने देने परते है तकि वो उलझे रहे,वो इतने उर्जा से भरे होते है कि जब तक खेल कुद कर थक नही जाते तब तक सोते नही है ,अब प्रश्न उतता है कि इतने छोते प्रानी मे इतनी उर्जा आती कहा से है ?
उर्जा कही से आती नही है ये तो हर जगह रहती है और जह चेतना होती है वहा प्रकत होती है
बच्चे हमारी तरह चिन्ता ग्रस्त नही होते है,निराश नही होते है अभी उन्हे ये नही पता होता है कि आसक्ति क्या होती है,फल  की इछा क्या है ,फल मिलना क्या है और असफलता क्या है इसलिये उनकी उर्जा अव्रोधित नही होती है इसलिये वो आलसी नही होते है. यदि हम भी ऐसी मनसिक अवस्था को पा सके तो आलसी नही हो सकते 

No comments:

Post a Comment