Friday, October 19, 2018

करवा चौथ

दिवाकर ऑफिस के काम से चेन्नई गए हुए थे ।
रागी ने स्कूल से आते ही मुझसे पूछा- मम्मा आप आज पूजा कैसे करोगी ,पापा तो यहाँ हैं ही नहीं ।
कोई बात नहीं बेटा पूजा हो जाएगी-मैंने कहा
अच्छा जैसे विन्नी मौसी करती थी,मौसा जी के फोटो की पूजा करके वैसे ही आप करोगे ?
रागी ने अपने दिमाग का घोड़ा दौड़ाया ।
हाँ वैसे ही करुँगी।
अब तुम चलो खाना खा कर फटाफट होमवर्क कर लो कह कर मैंने रागी को चुप करा दिया पर दिमाग में विन्नी घूमने लगी ।
मेरी चचेरी बहन विन्नी के पति आर्मी में थे इसलिए तीज त्योहार में परिवार के साथ कम ही रहते थे ।
हर साल करवा चौथ में हम सब बहनें पूजा करने मायके में ही इकठ्ठा हुआ करती थीं ।
जब हम लोग अपने अपने पति के साथ पूजा कर रहे होते थे तब विन्नी अपने पति की फोटो की पूजा करती थी ।  उसके करवा चौथ की शक्ति ने पति को तो मौत के मुँह से निकाल लिया था जब किसी मुठभेड़ में उनके पेट में गोली लग गयी थी
पर एक छोटी सी असावधानी से हुई दुर्घटना ने विन्नी की इहलीला को समाप्त कर दिया ।
सुबह बच्चों का टिफिन बनाने चली और गैस ख़त्म हो गया तो उसने स्टोव पर आलू उबलने के लिए रख दिया
नीचे फर्श पर स्टोव रखा था ,उसके पास ही खड़ी हो कर आता गूंथने लगी ।
हड़बड़ी में ध्यान नहीं रहा और स्टोव की लौ से उसके गाउन में आग लग गयी ।
सिन्थेटिक कपड़े का गाउन था इसलिए देखते ही देखते आग फ़ैल गयी
बच्चे जब तक उसको बुझाने का प्रयास करते तब तक जला हुआ कपड़ा शरीर में चिपक चुका था।
डॉक्टर्स के बहुत प्रयास के बाद भी उसको बचाया नहीं जा सका ।
बचती भी कैसे उसके लिए तो कभी किसी ने व्रत रखा ही नहीं था ।
औरतें घर-परिवार की धुरी होती हैं ,उनके बिना परिवार बिखर जाता है
पर उनकी लम्बी आयु के लिए कोई विधान समाज में क्यों नहीं बनाया गया।
माँ बूढ़ी भी हो जाती है तब भी पुत्र के मंगल कामना के लिए व्रत करती है, लड़कियाँ भाइयों के लिए व्रत करती हैं ,पत्नी पति की लंबी आयु के लिए व्रत करती हैं ।
माँ बेटी के लिए, भाई बहन के लिए और पति पत्नी के लिए व्रत क्यों नहीं करते हैं ।
ऐसा कुछ नियम रहता तो शायद विन्नी को भी किसी का व्रत बचा लेता ।
यही सोचते सोचते शाम हो गयी और मैं पूजा की तैयारी में लग गयी ।

Thursday, August 2, 2018

आशा

कठिन पथ में
कंटक और पत्थर तो होता है
पर लक्ष्य की परिणीति
रेशम की नरम कालीन होती है
विपरीत परिस्थिति को निराशा नहीं
कर्म की आंधी हटाती है
आशा के सागर का
कहीं कोई तल नहीं होता है
जैसे सूरज के लिए
सारी धरा समतल होती है
वैसे ही इच्छाशक्ति के सामने
गगन भी नतमस्तक हो कर
प्रयास की किरणों से जगमग हो जाता है

Monday, July 9, 2018

गुरु पूर्णिमा

गुरु पूर्णिमा
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महर्षि कृष्ण द्वैपायन व्यास की जयंती को हम व्यास पूर्णिमा या गुरु पूर्णिमा के नाम से जानते हैं ।

व्यास पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा क्यों कहते हैं ?
महर्षि व्यास ने हिन्दू समाज के स्वध्याय के लिए सभी ग्रंथ सुलभ किए......वेद और पुराण का विश्लेषण कर उसके अलग-अलग विभाग को बाँटा
वेद का विश्लेषण कर उसको मंत्र,ब्राह्मण,आरण्यक और उपनिषदों के रूप में सबको पृथक किया
मंत्र भाग के भी चार भाग किए.....ऋग,यजु,साम और अथर्व
जिनको हम चार वेद कहते हैं,वास्तव में वो वेद के सिर्फ एक अंग हैं ।
पुराण को भी अठारह ग्रंथों के रूप में संकलित कर के साधारण लोगों को वेद तत्व समझाने का काम किया.......इसलिए उनको आदि गुरु मान कर उनकी जयंती पर उनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए गुरु पूर्णिमा मनाने की परंपरा शुरू हुई ।

चुकि गुरु पूर्ण होता है इसलिए पूर्णिमा की तिथि को ही गुरु के नाम किया गया
पहले के समय में गुरु पूर्णिमा की संध्या में वायु परीक्षण भी किया जाता था जिसके आधार पर भावि तेजी-मंदी आदि का निर्धारण होता था ।
अब तो कोई जानता भी नहीं है ।

समय के साथ समाज बदला तो गुरुकुल भी विद्यालय बने और अब स्कूल हो गए हैं
गुरु-शिष्य शिक्षक-छात्र से होते हुए टीचर-स्टूडेंट हो गए ।
भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान बहुत ऊँचा था......तभी तो कबीर दास ने कहा था....."गुरु गोविंद दोनों खड़े
                                    काके लागूं पांय ।
                                    बलिहारी गुरु आपने
                                    जिन गोविंद दियो बताय ।।"
आज गुरु-शिष्य परंपरा शिक्षा के क्षेत्र में तो समाप्त ही हो चुका है.....आध्यात्मिक गुरु-शिष्य परंपरा की लकीर अभी भी पिटी जा रही है ।

आज फी दे कर पढ़ने वाले स्टूडेंट्स की दृष्टि में टीचर्स वेतन पाने वाले उनके नौकर से ज्यादा सम्मानीय नहीं होते हैं ।
प्राचीन भारत में आज की तरह विद्या-विक्रय नहीं होता था इसलिए गुरुकुल में राजा-रंक का भेदभाव नहीं था
राजकुमार हों या निर्धन का पुत्र दोनों एक साथ एक ही वृक्ष के नीचे कुश के आसन पर बैठ कर गुरु से शिक्षा लेते थे
निर्धनता किसी की शिक्षा में बाधक नहीं था और किसी को शिक्षा के लिए आरक्षण की आवश्यकता भी नहीं थी

गुरुकुलों का मूल मंत्र " सादा जीवन उच्च विचार "........तप और त्याग उनका उद्देश्य था और लोकहित पर जीवन उत्सर्ग उनका आदर्श
आज स्कूलों में ही हाई-फाई लाइफ और दिखावा सिखाया जाता है......तप और त्याग की जगह सुविधाओं की भरमार और लोकहित की जगह स्वार्थ को आदर्श बताया जाता है
परिणामस्वरूप अब कपिल,कणाद पाणिनि जैसे विद्या के धनी शिष्य नहीं रूबी राय और गणेश कुमार जैसे टॉपर होते हैं

प्राचीन भारत में गुरु-वर्ग के प्रति जो दृढ़ और आपार श्रद्धा शिष्य के हृदय में होती थी उस पर गर्व करने का अवसर गुरु पूर्णिमा देता है
अपनी प्राचीन परंपरा को नमन करें.....गुरु का मज़ाक उड़ाने वाली शुभकामनाएँ न दें