Wednesday, June 14, 2017

अधूरी कहानी

भूली बिसरी यादें राख की परत में दबी आग जैसी होती है
ऊपर से सब कुछ समाप्त हुआ दिखता है पर कुरेद दो तो जलता हुआ अंगारा हाथ जला देता है।
राकेश की शादी में श्रुति को देख कर एक पल के लिए विश्वास ही नहीं हुआ कि सामने दिखने वाली औरत श्रुति ही है
श्रुति ???
नहीं-नहीं.....वो यहाँ कैसे आ सकती है...मैंने खुद को समझाते हुए खुद से ही कहा और सर झटक कर आगे बढ़ गया
पर नज़रें बार-बार उसको ढूँढने लग रही थीं......
दोस्तों के साथ बात करते हुए भी दिमाग में श्रुति का ख्याल घूम ही रहा था
बाहर से तो दोस्तों के साथ हँसी-मज़ाक करने में व्यस्त था पर मन तर्क-वितर्क में लगा हुआ था
बार-बार पंद्रह वर्ष पहले के समय में लौट जा रहा था.......
श्रुति को अंतिम बार जब देखा था तब वो एक अल्हड़ लड़की थी
आज जिसको देखा था वो एक औरत थी
पर चेहरा-मोहरा और हाव-भाव श्रुति जैसा ही था......शायद श्रुति भी इस उम्र में ऐसी ही दिखती
मन में उधेड़बुन निरंतर चल रहा था
तभी सामने से वो आती हुई दिख गयी.....मैं गौर से उसको देखने लगा
इस बार उसके गोद में एक बच्चा भी था और वो जहाँ मैं खड़ा था उधर ही आ रही थी
उसको अपनी तरफ आता देख कर थोड़ा सा घबरा गया पर तभी सोचा कि मैंने तो कुछ न बोला है न किया है तो घबराना क्या
अभी सोच ही रहा था तब तक वो मेरे पास आ खड़ी हुई और अपने बच्चे को मुझे थमाते हुए बोली- थोड़ी देर रखो इसको ,मैं आती हूँ
आवाज़ सुनते ही कन्फर्म हो गया -श्रुति ही है
बिना मुझसे कुछ पूछे इतने अधिकार के साथ अपने बच्चे को पकड़ाने का साहस उसके सिवा और कोई कर भी नहीं सकता था
उम्र बढ़ गयी पर स्वभाव बिल्कुल नहीं बदला था
वो तो बच्चे को पकड़ा कर जाने कहाँ
गुम हो गई
मैं बच्चे को गोद में लिए हुए सोचने लगा-किसी ने पूछ लिया कि बच्चा किसका है तो क्या जबाब दूँगा
तभी ख्याल आया कि बच्चा थोड़ा बड़ा रहता और पूछ लेता कि आप कौन हैं तो क्या बताता इसको
इसकी मम्मी तो शायद मामा हैं बोल देती या अभी भी कहीं बोल दे -मामा को नमस्ते करो
विचित्र धर्मसंकट में फंसा हुआ महसूस कर रहा था
श्रुति एक बार फिर से प्रकट हुई..…..इस बार उसके हाथ मे खाने की प्लेट थी
आते ही बोली- चलो उधर एक टेबल खाली है वहीं बैठ कर बेटे को खाना भी खिला देती हूँ और तुमसे बात भी कर लूँगी
मैं यंत्रवत उसके पीछे-पीछे चल पड़ा
समय की एक लंबी दीवार का भी हम दोनों पर कोई असर नहीं हुआ था
ऐसा लग रहा था जैसे समय का पहिया वहीं रुका हुआ है जहाँ पंद्रह वर्ष पहले था
आज भी वो बोल रही थी और मैं बिना प्रतिकार किए उसकी बातें मान रहा था
इसकी बातें मान कर कैसे-कैसे उल्टे-पुल्टे काम किए हैं
फरमाइशें भी इसकी अजीबोगरीब हुआ करती थीं......एक दिन जिद कर बैठी कि मेरे भैया को आँख मारना सिखा दो
मरता क्या न करता....बात तो माननी ही थी
बस एक शिकायत श्रुति को हमेशा रही.....जब भी किसी लड़की को मुझसे बात करते देखती तब उससे झगड़ा कर लेती......
उसके बाद उससे झगड़ा करने के लिए मेरे ऊपर दबाव बनाती जिस पर मैं इंकार कर देता
अकारण किसी लड़की से लड़ना मुझे पसँद नहीं था
इसके बाद दो-चार दिन नाराज़ रहती फिर खुद ही मान जाती थी
बेटे को खाना खिलाते हुए जो बातों का दौर शुरू हुआ वो हमारे खाने के बाद भी समाप्त नहीं हुआ
ऐसा लग रहा था जैसे मैं राकेश की शादी में नहीं श्रुति से मिलने ही यहाँ आया था
मुझे तो कोई अंदाज़ा ही नहीं था कि यहाँ श्रुति भी मिल सकती है
क्योंकि उसके पापा के शहर छोड़ने के बाद कोई कॉन्टेक्ट ही नहीं रहा ना ही मैंने उसके बारे में पता करने का प्रयास किया
शायद वो मेरे जैसी निर्मोही नहीं थी इसलिए मेरे बारे में सारी जानकारी रखती रही......इस शादी में मैं आनेवाला हूँ इसकी भी खबर उसको थी
इसलिए मुझसे मिलने के लिए ही खासकर वो भी यहाँ आई थी
इस मुलाकात से एक बात तो समझ में आ गयी कि प्यार कभी खत्म नहीं होता है
आकर्षण हर नए व्यक्ति या वस्तु की तरफ खिंचता है पुराने होने के साथ कम होते-होते खत्म भी हो जाता है
जीवन में न जाने कितने लोगों से जान-पहचान होती है दोस्ती होती है
लेकिन समय के साथ अधिकाँश का साथ छूट जाता है बस कुछ ही होते हैं जिनका साथ कभी नहीं छूटता है
ये वही लोग होते हैं जिनसे हमारा दिल मिल जाता है और ये रिश्ते अटूट होते हैं जिसपर समय और दूरी का कोई प्रभाव नहीं होता है
उन्नीस-बीस वर्ष की उम्र में हुआ प्यार.......प्यार कम विपरीत लिंग आकर्षण ज्यादा होता है
श्रुति और मेरा प्यार भी कुछ ऐसा ही था......मेरे लिए तो सिर्फ मस्ती थी लेकिन इस अल्हड़ ने बहुत गंभीरता से ले लिया था
मेरा केयर करने,छोटी-बड़ी सभी इच्छाओं को पूरा करने  के लिए कुछ भी कर जाती थी
आज बात करते हुए जब उसने मेरे शर्ट की तारीफ की तब उसके दिए हुए शर्ट की बरबस ही याद आ गयी
किसी काम से हमदोनों मार्केट गए थे.....वहाँ एक शोरूम में पीटर इंग्लैंड की शर्ट डिसप्ले में लगी थी......मुझे बहुत पसंद आ गयी लेकिन छात्र जीवन में पॉकेट में इतने पैसे तो होते नहीं थे कि महँगी शर्ट खरीदी जा सके
शर्ट देख कर तारीफ करते हुए हम वापस आ गए.....तीन- चार दिनों के बाद वो शर्ट मेरे हाथ में थी
जाने कैसे पैसों का जुगाड़ करके उतनी महँगी शर्ट मेरे लिए खरीद कर ले आई थी
यूँ तो उस पर प्यार भी बहुत आता था पर उसके झक्कीपने पर गुस्सा भी आता था
इन नोकझोंक और रूठने- मनाने के साथ समय बीत रहा था तभी एक दिन श्रुति की माँ को उसके बैग में मेरा फोटो मिल गया
बस उसके बुरे दिन आ गए......माँ-बाबूजी से डाँट पड़ी
इस झक्की ने गुस्से में एक बैग में अपने कुछ कपड़े भरे और मेरे घर पहुँच गयी
उस समय मैं घर में नहीं था पर मेरी माँ के पैर छू लिए और माँ ने प्यार से आवाभगत करके मेरे रूम में बिठा दिया
मैं दोस्तों के साथ बाजार में घूम रहा था तब तक घर में भूकंप आया चुका था जिसकी खबर भी नहीं थी
पड़ोस में रहने वाले बचपन के दोस्त ने दोस्ती का कर्तव्य निभाने के लिए मुझे ढूँढना शुरू किया.......मेरे सारे ठिकानों का उसको पता था.......घूम-घूम कर मुझे ढूँढ रहा था ताकि घर पर आए क़यामत से आगाह कर सके
पर मैं भागता फिर रहा था क्योंकि उसको अपने साथ नहीं ले जाना चाहता था
बहुत मेहनत के बाद उसने मुझको पकड़ा और जब घर के हालात की खबर दी तो मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई.......आज बाबूजी से जमकर पिटाई हो सकती है ,सोचते ही मैंने नीरज सहित बाकी सभी दोस्तों से उनके सारे पैसे झटके और बाइक से ही बड़े भैया के पास चल पड़ा
उधर बाबूजी ने श्रुति के बाबूजी को बुला कर उनकी बेटी उनके हवाले कर दी
उन्होंने बाबूजी का एहसान माना,जिन्होंने उनकी इज्जत जाने से बचा ली
उसके बाद श्रुति को कोलकाता भेज दिया और कुछ समय बाद खुद भी वहीं चले गए
मैंने तो दो महीने तक घर में शक्ल ही नहीं दिखाई......बाद में बाबूजी का गुस्सा शांत होने के बाद माँ और भाई की सहायता से घर में एंट्री मिली
उसके बाद से तो मानो युग बीत गया......श्रुति ख्यालों से प्रत्यक्ष तो हट निकल गयी थी लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से हमेशा साथ रही......उससे जो लगाव था वो फिर कभी किसी और लड़की के साथ महसूस ही नहीं हुआ
शायद यह एक कारण है कि कभी किसी के साथ रिलेशनशिप ज्यादा बढ़ी ही नहीं
जीवन में बहुत से अनसुलझे रहस्य रहते हैं जो वक्त किसी घटना के माध्यम से सुलझा देता है ।
श्रुति का अचानक यूँ मिलना न होता तो उसके लिए अपने मन में दबे प्यार को शायद कभी समझ ही नहीं पाता
पर ये समझ भी तब आई जब वक्त निकल गया......

No comments:

Post a Comment