Monday, January 2, 2017

अपराधबोध

आज भी ऑफिस पहुँची तो रितिका के चेहरे पर वही भाव दिखे जो पिछले चार-पाँच दिनों से दिख रहा था ।
हमेशा हँसती-मुस्कुराती रहने वाली इन दिनों गुमसुम और न जाने किन ख्यालों में खोयी रहती थी ।
शुरू में तो मैंने इग्नोर किया........इंसान के मूड का कोई भरोसा नहीं होता है खासकर लड़कियों का
पर लगातार ऐसा रहने के पीछे कोई विशेष कारण होगा
मन में द्वन्द शुरू हो गया था
रितिका से उसकी परेशानी के बारे में पूछना चाहिए या नहीं.......
कभी लगता कि उसकी निजी समस्या से मेरा क्या लेना-देना.........तो कभी लगता कि बात करने से शायद उसका मन हल्का हो जाएगा..... क्या पता मैं उसकी समस्या सुलझा दूँ ।
अंत में निश्चय किया,जो हो मुझे उससे एक बार बात करनी ही चाहिए........मेरी टीम का हिस्सा है और उसके परेशान रहने का असर काम पर भी पड़ रहा ,अक्सर छोटी-छोटी गलतियाँ हो रही हैं उससे ।
लंच टाइम में मैंने उसको अपने केबिन में बुलाया और अपने साथ खाने के लिए बैठा लिया ।
खाना खाते हुए माहौल को थोड़ा हल्का बनाने के लिए कुछ जोक्स आदि सुनाती रही जिसकी प्रतिक्रिया  रितिका मेरा मान रखने के लिए एक फीकी सी मुस्कुराहट से दे रही थी ।
खाना ख़त्म करके मैं असली मुद्दे पर आई.......उससे उसकी परेशानी का कारण पूछ बैठी ।
उत्तर में एक बड़ा सा मौन और शून्य में देखती आँखें मेरे सामने था ।
उसकी हिचकिचाहट मैं समझ सकती थी ।
अपने बॉस को जबाब नहीं दूँगी कह कर मना भी नहीं कर पा रही थी और व्यक्तिगत परेशानी बताने में संकोच भी कर रही थी ।
मैंने उसको बोला - तुम भूल जाओ कि ऑफिस में हो,मैं एक शुभचिंतक के नाते तुमसे पूछ रही हूँ ।
ऑफिस की कोई प्रॉब्लम हो या घर की तुम बेझिझक मुझसे बता सकती हो ।
हम मिल कर कोई समाधान ढूंढ ही लेंगे ।
अपनी बड़ी बहन या सहेली मान कर ही शेयर कर लो और भरोसा रखो बात गुप्त ही रहेगी ।
थोड़ी हिम्मत दिखा कर उसने बोला- मेरी समस्या का कोई समाधान ही नहीं है ।
मैं बात काटते हुए बोल पड़ी- ऐसी कोई समस्या है ही नहीं जिसका कोई समाधान न हो , तुम बताओ तो पहले 
बहुत समझाने-बुझाने के बाद उसने अपना मुँह खोला
उसके बाद जो कहानी सामने आई.......उसने मेरी वर्षो की अवधारणा को तोड़ दिया ।
समाज में एक सामान्य मान्यता है.....बहु ही सास-ससुर के साथ नहीं रहना चाहती है इसलिए बुजुर्गों को अकेलेपन का सामना करना पड़ता है ।
परंतु रितिका की कहानी इसके विपरीत थी......वो अपने सास-ससुर को अपने साथ रखना चाहती थी लेकिन वो लोग नहीं रहना चाहते थे ।
उनकी इच्छा थी कि रितिका और उसके पति नौकरी छोड़ कर उनलोगों के साथ रहें ।
सास की तबियत खराब रहने लगी थी ,उनको विशेष देखभाल की आवश्यकता थी ।
ससुर भी रिटायर हो चुके थे उनसे सास की देखभाल संभव नहीं था ।
घर में और कोई था नहीं.....ननद और देवर विदेश में थे
इसलिए सबने रितिका पर दबाव बनाना शुरू किया था
उसके सास-ससुर गाँव में रहते थे.....वहाँ बच्चों की पढाई की अच्छी व्यवस्था नहीं थी ।
इधर पति-पत्नी दोनों इ एम आई के बोझ तले दबे थे ।
घर और गाड़ी का लोन तो था ही ननद की शादी में लिए गए लोन की किश्तें भी अभी चालू थीं ।
दोनों की नौकरी के सहारे घर की गाड़ी चल रही थी ।
इसलिए रितिका चाहती थी कि सास-ससुर उसके पास रहने आ जाएँ तो उनकी देखभाल भी हो जाएगी और सब कुछ सामान्य गति से चलता रहेगा ।
पर वो लोग अपना घर छोड़ कर इनके पास नहीं आना चाहते थे.....यहाँ उनको अपनी बोली,भाषा,माटी और मानुस की कमी खलती थी इसलिए अच्छा नहीं लगता था ।
ननद प्रतिदिन फोन पर भाई को लताड़ रही थी......बेटा होने का कर्तव्य नहीं निभाने की याद दिला रही थी ।
उसके अनुसार इनलोगों को माता-पिता की परवाह ही नहीं थी ।
माँ बीमार है उसको देख भाल की जरुरत है पर ये लोग यहाँ ऐश कर रहे हैं ।
वास्तिवकता उससे अलग थी.....सास के इलाज का पूरा खर्च रितिका के पति के मेडिक्लेम से हुआ था ।
देवर ने एक बार कुछ पैसे भेज कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली थी ।
उसके बाद से उनलोगों की सारी जरूरतों का ख्याल ये लोग यहाँ रहते हुए भी रख रहे थे
जैसे ही रितिका के पति को समय मिलता वो छुट्टी लेकर माता-पिता से मिलने चले जाते थे ।
नियमित रूप से हर महीने पिता के एकाउंट में पैसे डाल देते थे ताकि उनको पैसों की कोई दिक्कत ना हो ।
जिस चीज की भी आवश्यकता होती थी उसको यथासंभव पूरा करते थे ।
रितिका भी कई बार उनलोगों से अनुरोध कर चुकी थी कि एक फुल टाइम मेड रख लें उसके पैसे वो दे देगी परंतु सास-ससुर को मेड के हाथ का काम पसंद नहीं आता था इसलिए नहीं रखते थे ।
उनकी बस एक ही इच्छा थी बहु आ कर रहे घर और उनकी देखभाल करे ।
बच्चों की पढाई के लिए उनकी दलील थी कि जो लोग गाँव में रह रहे हैं उनके बच्चे भी तो पढ़ ही रहे है......ये बच्चे भी पढ़ लेंगे ।
बेटा नौकरी नहीं छोड़ सकता है तो बहु कम से कम नौकरी छोड़े और साथ रहे ।
रितिका यदि नौकरी छोड़ देगी तो पति का पूरा वेतन किश्तें चुकाने में ही ख़त्म हो जाएंगी इस सच्चाई को कोई मानने को तैयार ही नहीं था ।
अब वो निश्चय नहीं कर पा रही थी कि क्या निर्णय ले......अपनी नौकरी छोड़ दे और गाँव चली जाए या जैसा चल रहा है चलने दे ।
पति अपराधबोध से ग्रस्त रहने लगे थे.....इन सबका असर इनके रिश्तों पर पड़ रहा था ।
घर में सब चिड़चिड़े हुए पड़े हैं.....पति अपना गुस्सा पत्नी पर और पत्नी अपना गुस्सा बच्चों पर निकाल रही थी.....बच्चे डरे-सहमे रहते थे,पढाई भी ठीक से नहीं कर रहे थे ।
पूरी कहानी सुन कर मुझे अपने उस कहे पर अफ़सोस हो रहा था......जो मैंने बड़े आत्मविश्वास से कहा था-ऐसी कोई समस्या नहीं जिसका कोई समाधान न हो
कुछ ऐसी भी समस्याएँ होती हैं जिनका समाधान नहीं हो सकता है क्योंकि जिद का कोई समाधान नहीं होता है ।

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