Tuesday, June 7, 2016

वक़्त

फ्रिज में दो रसगुल्ले रखे थे,तुमने खाए हैं ??
हाँ मम्मी !
ऐसे बिना पूछे मत खा लिया करो,मैंने भोग लगाने के लिए रखे थे।
मम्मी नाराज होते हुए बोलीं
सीने में टीस सी उठ गई।
मोहित सोचने लगा,ये मेरी वही माँ हैं जो पहले दिनभर कुछ खाओगे बेटा ,पूछते हुए नहीं थकती थीं।
आजकल तो हर दूसरी बात पर मम्मी नाराज हो जाती हैं ,दिन में दस बार खर्चे,महंगाई और बचत की बातें सुनाती हैं। पापा भी दिन में एक बार तो मेरी पढाई पर हुए खर्चे की याद दिला ही देते है।
वक़्त बदल गया तो रिश्तों के एहसास भी बदल गए।
कुछ ही महीनों पहले तक जब भी घर आता तब यहाँ की फिजा कुछ और ही रहती थी।
मम्मी दिन भर प्यार लुटाते हुए आगे पीछे घूमती रहती थीं। पापा दुनिया-जहाँ की बातें करते,घर से जुड़ी समस्याओं की चर्चा करते।
कुछ महीने पहले वो कम्पनी ही बंद हो गयी जिसमें मोहित काम कर रहा था। नई नौकरी की तलाश में हाथ-पाँव मार रहा था लेकिन नौकरी इतनी आसानी से मिलती कहाँ है।
कल शाम मोबाइल रिचार्ज कराने के लिए पापा से पैसे मांगें थे तब भी मम्मी ने नसीहत देते हुए कहा,फालतू पैसे मत उड़ाओ,आमदनी नहीं है फिर भी खर्चों पर कण्ट्रोल नहीं है।
पहले हजारों रुपए मम्मी को दे देता था तब कभी मम्मी ने ऐसी नसीहतें नहीं दी,बल्कि हर आने-जाने वाले के सामने मेरे खुले दिल से खर्च करने की आदत का बखान करती रहती थीं।
कंपनी की तरफ से रहना और खाना फ्री था इसलिए बस थोड़े से पैसे अपने खर्च के लिए रख कर पूरी सैलरी घर भेज देता था ।यह सोच कर कि जो भी कमा रहा हूँ उस पर घरवालों का ही हक़ है,मुझे जरूरत ही नहीं है इसलिए कभी अपने पास कुछ बचा कर नहीं रखा।
नौकरी और पैसे ख़त्म होते ही प्यार,अपनापन,मान-सम्मान सब ख़त्म हो गया है। घर में बोझ बन गया हूँ।
माता-पिता भी ऐसा बर्ताव कर सकते हैं,सोचा भी नहीं था। रिश्ते भी पैसों के मोहताज होते हैं।
बेटा सब सामान रख लिया न।कुछ छूटा तो नहीं देख लेना। मम्मी परेशान हो रही थीं ।
मुझे नौकरी मिल गयी थी ,आज ज्वाइन करने जा रहा हूँ। घर की फ़िजा फिर से बदल गयी है।
जीवन में बुरे वक़्त का आना भी जरुरी है।

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