एक औरत अक्सर मुझे पार्क में मिलती थी । हमेशा अकेली ही रहती थी। चालीस साल के आसपास उम्र होगी ,गोरा रंग गंभीर मुद्रा हाथ में मोबाइल और गाड़ी की चाभी लिए बच्चों के झूले के सामने वाले बेंच पर बैठी रहती थी।
शाम में मैं भी बच्चों को ले कर जाती थी। बच्चों के साथ खेल कर थक जाती तो वहीँ बेंच पर बैठ जाती थी ।
जिज्ञासावश एक दिन उससे पूछ बैठी आप अकेली ही आती हैं आपके बच्चे नहीं आते हैं यहाँ ?
मेरे बच्चे दूर रहते हैं इसलिए मैं अकेली ही आती हूँ।
कितने बच्चे हैं आपके ?
पाँच हैं चार लड़का और एक लड़की।
सुनकर मुझे झटका लगा।आज के समय में पाँच बच्चे सोच कर ही घबराहट सी होने लगी।
सबको हॉस्टल में डाल दिया है क्या आपने,कितने बड़े हैं सब ? मैं पूछ बैठी।
सबसे बड़ा लड़का ग्रैजुएशन कर रहा है दूसरा ग्यारहवीं में है तीसरा नौवीं में उससे छोटी लड़की पाँचवी में और सबसे छोटा पहली कक्षा में है और सब अपनी- अपनी माँ के पास रहते हैं।
बताते बताते उनकी आँखें नम हो गई।
मैं समझ गयी कि ये एक अधूरी माँ है जो अपनी ममता का शहद बाँट कर एक बड़े परिवार का निर्माण कर रही है,जहाँ कोई नहीं है और सब हैं।
Thursday, June 16, 2016
अधूरी माँ
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